Bhiwadi में स्थित कर्मचारी राज्य बीमा निगम ESI Hospital या रीको चौक पर स्थित मिनी चिकित्सालय, यहाँ श्रमिकों को उचित इलाज उपलब्ध नहीं होता। जब मजदूर इमरजेंसी में निजी अस्पताल में इलाज करा लेता है तो उसे दावा (क्लेम) से पुनर्भुगतान में मिलने वाला पैसा भी समय पर नहीं मिलता है। कई महीनों तक क्लेम अटका रहता है। पहले तो जरूरी कागज जमा कराने में ही श्रमिकों को पसीने आते हैं, और जब कागज एकत्रित कर जमा करा देता है तो पुनर्भुगतान में महीनों लग जाते हैं। मिनी चिकित्सालय के चिकित्सकों के अनुसार इलाज संबंधी कागज जमा होने के बाद एक महीने में पुनर्भुगतान का नियम है, लेकिन कई महीनों के मामले अभी भी लंबित चल रहे हैं।
तीन महीने बाद भी नहीं आया पैसा
आपातकाल में निजी अस्पताल में इलाज कराने के बाद श्रमिक मिनी चिकित्सालय रीको चौक पर बिल जमा कराते हैं, ताकि उनके इलाज में खर्च हुए पैसे वापस मिल जाएं। पहले तो निजी अस्पताल में उनका पैसा ज्यादा लगता है और दूसरा सरकारी अस्पताल में कम दर पर मिलता है।
ऊपर से कई महीनों तक राशि नहीं मिलती। दिसंबर से जनवरी के बीच में 22 मरीजों ने आईपीडी, सात ने ओपीडी और 11 ने एसएसटी के तहत निजी अस्पताल से इलाज कराया। 40 मरीजों का पैसा दो महीने बाद भी नहीं आया है। यह रिकॉर्ड तो खुद मिनी चिकित्सालय का है।
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जबकि पत्रिका पड़ताल में ऐसे मरीज भी सामने आए हैं जिन्होंने नवंबर में बिल जमा कराया और तीन महीने बीतने के बाद भी उनका पुनर्भुगतान नहीं हुआ है।
स्टाफ का अभाव
मिनी ईएसआईसी राज्य सरकार द्वारा संचालित है। यहां पर स्टाफ की कमी है। प्रतिदिन तीन सौ मरीजों की ओपीडी होती है, लेकिन कनिष्ठ विशेषज्ञ, प्रथम श्रेणी नर्स, द्वितीय श्रेणी नर्स और वार्ड बॉय के 24 पद हैं जिनमें से 19 रिक्त हैं।
मरीजों द्वारा इलाज कराने पर बिल मुख्यालय भेजे जाते हैं, वहां से ही पैसा सीधे खाते में जाता है। देरी की वजह तो मुख्यालय से ही पता चल सकती है।
डॉ. रूचि, प्रभारी, मिनी ईएसआईसी